
अप्रैल
के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक बड़ा बवाल छिड़ा हुआ है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के खिलाफ आगरा में मुकदमा दर्ज हो गया है। वजह है राणा सांगा पर दिया गया सुमन का एक बयान, जिसने राजपूत समाज में भारी आक्रोश फैला दिया। सुमन ने 16वीं सदी के प्रसिद्ध राजपूत राजा राणा सांगा को 'गद्दार' कहा। उनका कहना था कि सांगा ने बाबर को भारत बुलाकर दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराने में मदद की थी। इस बयान के बाद माहौल में उबाल आ गया।
राजपूत संगठनों ने सुमन की टिप्पणी को सीधे-सीधे अपने गौरव पर हमला बताया। विरोध इतना तेज़ हुआ कि आगरा में सुमन के घर और काफिले पर हिंसक हमला हो गया। सड़कों पर प्रदर्शनकारियों ने टायर जलाए, पथराव किया और प्रशासन को खूब घेरा। हालात ऐसे बिगड़े कि पुलिस को भारी सुरक्षा तैनात करनी पड़ी।
इन घटनाओं के बाद अखिलेश यादव सरकार पर बरस पड़े। उन्होंने कहा, यूपी में सरकार हिंसा रोकने में नाकाम रही है और ये हमले कहीं न कहीं सत्ता की मिलीभगत से हुए हैं। उनकी मांग थी कि दलित समाज से आने वाले सुमन को निशाना बनाकर एक सुनियोजित संदेश दिया जा रहा है। अखिलेश ने पार्टी की ओर से संविधान, सामाजिक समरसता और लोगों के सम्मान की बात रखी और हिंसा के हर रूप की आलोचना की।
रामजी लाल सुमन ने विवादित बयान देने के बाद खुद को सामाजिक न्याय का पैरोकार बताया और हिंसा के लिए भाजपा व प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया। उनका आरोप है कि उनके बयान को गलत संदर्भ में पेश किया गया। दूसरी ओर, विपक्ष ने आरोप लगाया कि राजपूत समाज की भावनाओं को चोट पहुंचाने के लिए जानबूझकर ऐसे बयान दिए जा रहे हैं। राणा सांगा का नाम हरियाणा, राजस्थान, यूपी और गुजरात जैसे राज्यों में राजपूत गौरव से जुड़ा है—ऐसे में किसी भी नेता का यह बयान सुलगती चिंगारी बन गया।
हंगामे की एक और वजह सुमन द्वारा आगरा में एक नाबालिग बच्ची के साथ हुई ज्यादती के मामले को हल्का बताना रहा। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि मामला इतना बड़ा नहीं था कि अखिलेश यादव को पीड़िता से मिलने जाना पड़ता। इन शब्दों की पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह आलोचना हुई।
इस सारे घटनाक्रम के बीच पुलिस ने समुदायों के बीच तनाव फैलाने, सार्वजनिक आदेश का उल्लंघन करने और माहौल बिगाड़ने के आरोपों में दोनों नेताओं के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। सूत्रों के मुताबिक, केस में आईटी एक्ट, सार्वजनिक शांति भंग करने और सांप्रदायिक तनाव फैलाने की धाराएं लगाई गई हैं। राजपूत समाज की ओर से यह मांग भी उठी है कि ऐसे बयानों पर सख्त कानूनन कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में कोई भी सार्वजनिक तौर पर किसी सामाजिक समुदाय के प्रति अनादर न कर सके।
फिलहाल यूपी की सियासत और सामाजिक वातावरण में पिछले कई दिनों से यही मुद्दा छाया हुआ है। एक तरफ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप में लगे हैं, दूसरी ओर प्रशासन पर कानून व्यवस्था कायम रखने का दबाव है। आगरा समेत राज्य भर में पुलिस चौकसी बरती जा रही है और सोशल मीडिया पर भी निगरानी तेज हो चुकी है।