कोलकाता डॉक्टर के बलात्कार-हत्या के मामले में आरोपी संजय रॉय की हिंसक इतिहास और पुलिस की निष्क्रियता

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के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)

कोलकाता डॉक्टर के बलात्कार-हत्या के मामले में आरोपी संजय रॉय की हिंसक इतिहास और पुलिस की निष्क्रियता

कोलकाता डॉक्टर की बलात्कार-हत्या: संजय रॉय की हिंसक पृष्ठभूमि और पुलिस की निष्क्रियता

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 31 वर्षीय डॉक्टर की निर्दयतापूर्ण बलात्कार-हत्या के मामले में संजय रॉय प्रमुख आरोपी है। इस घटना ने न केवल इस भीषण अपराध को उजागर किया है, बल्कि पुलिस की निष्क्रियता और आरोपी की पुरानी हिंसक प्रवृत्तियों को भी प्रकाश में लाया है।

आरोपी संजय रॉय की पृष्ठभूमि

31 वर्षीय संजय रॉय, जो कोलकाता पुलिस में एक नागरिक स्वयंसेवक के पद पर कार्यरत था, का अपनी वैवाहिक जीवन में हिंसा और दुर्व्यवहार का लंबा इतिहास है। उसकी पत्नी, जो तीन महीने की गर्भवती थी, ने रॉय पर हमले और दुर्व्यवहार के आरोप में कई बार शिकायतें दर्ज कराई थीं। पहली शिकायत 8 अगस्त 2022 को की गई थी जबकि दूसरी शिकायत 13 मई 2023 को दर्ज की गई थी। इन शिकायतों के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने या किसी अन्य प्रकार की कार्रवाई करने में असमर्थ रही।

संजय रॉय की पत्नी और परिवार की स्थिति

संजय की पत्नी और उसके परिवार का मानना है कि अगर पुलिस ने समय रहते उचित कार्रवाई की होती, तो शायद यह भयावह घटना टल सकती थी। संजय की पत्नी की माँ, दुर्गा देवी ने भी सार्वजनिक रूप से पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठाए और न्याय की मांग की है।

प्रमुख सबूत और फॉरेंसिक रिपोर्ट

फॉरेंसिक परीक्षणों ने इस मामले में ठोस सबूत प्रदान किए हैं। पीड़िता के नाखूनों के नीचे पाया गया रक्त और त्वचा के नमूने संजय रॉय के चोटों से मेल खाते हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि संजय रॉय अपराध स्थल पर मौजूद था और उसके साथ संघर्ष हुआ था। इन सबूतों को अदालत में पेश किया जा चुका है, जो संजय रॉय के दोषी होने का मजबूत आधार बनता है।

न्याय की मांग और संभावित सजा

इस घटना के बाद से कोलकाता की सड़कों पर न्याय की मांग जोर पकड़ चुकी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मामले की तात्कालिक सुनवाई और कठोरतम सजा की मांग की है। संजय रॉय की पुलिसवाली बहन ने भी उसे त्याग दिया है और उसके लिए सख्त सजा की मांग की है।

पुलिस की भूमिका और निष्क्रियता

एक नागरिक स्वयंसेवक के तौर पर संजय रॉय का पुलिस में कुछ प्रभाव था, जिसने संभवतः पुलिस की निष्क्रियता में योगदान दिया। यह सवाल भी उठ रहे हैं कि कैसे एक अपराधी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा बना रहा और पिछले सभी मामलों में उसे उचित सजा नहीं मिली।

जांच की दिशा

जांच एजेंसियों का ध्यान अब इस बात पर केंद्रित है कि क्या संजय रॉय ने यह अपराध अकेले किया या उसके साथ कोई और भी शामिल था। पुलिस इस मामले को गंभीरता से ले रही है और हर पहलू की बारीकी से जांच कर रही है।

समाज का दृष्टिकोण

यह घटना समाज में एक और चोट साबित हुई है, जहाँ महिलाओं की सुरक्षा पर फिर से सवाल खड़े हुए हैं। इस मामले ने शहर की पुलिस व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लगाया है और इसे सुधारने की आवश्यकता पर बल दिया है।

कुल मिलाकर, यह मामला न केवल एक भयावह अपराध की कहानी है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे संस्थागत निष्क्रियता समाज में अन्याय को बढ़ावा देती है। अब समय आ गया है कि न्याय व्यवस्था और पुलिस प्रणाली में सुधार किए जाएं ताकि ऐसे अपराधों की पुनरावृत्ति न हो।

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