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के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की गहमा-गहमी के बीच एक गंभीर आरोप ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को पालघर जिले के विरार के एक होटल में नगद बांटकर वोट खरीदने का प्रयास करने का आरोप लगाया गया है। बहुजन विकास आघाड़ी (बीवीए) की ओर से समर्पित आरोप के अनुसार, तावड़े को 5 करोड़ रुपये की नगदी के साथ पकड़ा गया। इस गंभीर आरोप के बाद राजनीतिक विरोधियों में हड़कंप मच गया है।
बीवीए नेता हितेंद्र ठाकुर और उनके पुत्र क्षितिज ठाकुर ने इस प्रकरण को लेकर तीखा विरोध किया। वे अपने समर्थकों के साथ होटल में पहुंचे और तावड़े को घेरकर उनकी गिरफ्तारी की मांग की। इस आरोप की गंभीरता को देखते हुए पुलिस को दो एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। इस घटना ने राजनीतिक गलियारों में नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
विनोद तावड़े ने इन आरोपों को पूरी तरह से निराधार बताते हुए अपनी बेगुनाही की बातें की। उन्होंने कहा कि वे नालासोपारा में अपने कार्यकर्ताओं को चुनावी प्रक्रिया के बारे में मार्गदर्शन देने आए थे, न कि किसी वजह से नगद बांटने। तावड़े ने चुनाव आयोग से सीसीटीवी फुटेज की जाँच की मांग की और अपनी निर्दोषता की बात कही।
चुनाव आयोग भी इस घटना से हैरान है और उन्होंने इस प्रकरण की गहनता से जाँच शुरू कर दी है। घटनास्थल से करीब 9,93,500 रुपये की राशि जब्त की गई है और जांच अभी जारी है।
इस प्रकरण पर सियासी तापमान चढ़ता जा रहा है। शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को निशाना बनाते हुए इस घटना की निंदा की तो वहीं एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन औवेसी ने इस मुद्दे पर तंज कसते हुए इस प्रकार की राजनीति को 'वोट जिहाद या धर्म युद्ध' कहा। कांग्रेस ने भी बीजेपी पर पैसे के बल पर चुनाव को प्रभावित करने का आरोप लगाया।
इस प्रकरण में होटल के बाहर भी काफी नाटकीयता देखी गई। बीवीए के कार्यकर्ताओं ने होटल के अंदर जाकर तावड़े के खिलाफ प्रदर्शन किया। उनकी गिरफ्तारी की मांग के बीच पुलिस को होटल को सील करना पड़ा और तावड़े को पुलिस सुरक्षा में बाहर निकाला गया।
राजनीतिक पार्टियां इस प्रकरण पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दे रही हैं। एक तरफ बीजेपी इन आरोपों को साज़िश करार दे रही है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे राजनीति में नैतिक मानकों का पतन मान रहा है। तावड़े की गिरफ्तारी की मांग को लेकर राजनीतिक पारा चरम पर है। इस मामले का भविष्य में चुनाव परिणामों पर क्या असर होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।
इस पूरे मामले ने बिना शक की चुनावी प्रक्रिया में साफ़गोई और पारदर्शिता पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। जनता के विश्वास और राजनीतिक मूल्यों की रक्षा करना ही इस वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गई है।