भारतीय तीरंदाज – तीरंदाजी की दुनिया में भारत की चमक

जब हम भारतीय तीरंदाज, वो खिलाड़ी जिनके पास तीर को लक्ष्य तक पहुँचाने की खास तकनीक और मानसिक ताकत होती है. अक्सर इन्हें Indian Archer कहा जाता है, तो चलिए देखते हैं कि ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसी संदर्भ में आर्करी कंपाउंड, एक आधुनिक तीरंदाजी शैली जहाँ तीर को एक लचीलाइयां बाउंड के साथ लेज़र की तरह स्थिर किया जाता है ने बहुत सारे भारतीय तीरंदाज को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। पैरालिम्पिक, विकलांग एथलीटों के लिए आयोजित अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजन जहाँ तीरंदाजी एक प्रमुख इवेंट है में हाल ही में शीतल देवी और राकेश कुमार ने मिश्रित टीम कॉम्पाउंड में ब्रॉन्ज़ जीतकर इस बात को सिद्ध किया कि भारतीय तीरंदाज हर मंच पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। इसी तरह राष्ट्रीय तीरंदाजी संघ, भारत की मान्यताप्राप्त तीरंदाजी governing body जो नियम, चयन और प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाती है भारतीय तीरंदाजों को व्यवस्थित समर्थन देती है। इस परिचय से साफ़ हो जाता है कि भारतीय तीरंदाज, उन्नत उपकरण, अंतर्राष्ट्रीय मंच और संस्थागत समर्थन के बीच कैसे जुड़ते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय तीरंदाज की झलक

पिछले कुछ सालों में भारतीय तीरंदाजों ने ओलम्पिक, एशियन गेम्स और पैरालिम्पिक जैसे बड़े इवेंट्स में लगातार मेडल बना रहे हैं। उदाहरण के लिए, शीतल देवी और राकेश कुमार का ब्रॉन्ज़ (पैरालिम्पिक 2024) यह दर्शाता है कि भारतीय तीरंदाज न केवल सतही प्रतियोगिताओं में बल्कि विशेष श्रेणियों में भी चमकते हैं। इस जीत ने "पैरालिम्पिक" को भारतीय तीरंदाजी के विकास के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना दिया। उसी तरह, भारत‑वेस्टइंडीज़ टेस्ट सीरीज में शुभमन गिल ने अपने बॉलिंग कौशल से क्रिकेट के साथ भी तीरंदाजी की सटीकता को दिखाया, जिससे तीरंदाजों के लिए फोकस, अनुशासन और तेज़ प्रतिक्रिया का महत्व समझ आता है। इन सब घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि "आर्करी कंपाउंड" तकनीक ने एथलीट को अधिक स्थिरता और सटीकता दी, जिससे मेडल जीतना आसान हो गया। राष्ट्रीय तीरंदाजी संघ हर साल नई चयन परीक्षाएं और प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है, जिससे ताज़ा टैलेंट को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर लाया जा सके।

ताकि आप समझ सकें कि भारतीय तीरंदाज कैसे तैयार होते हैं, हमें उनके प्रशिक्षण पैटर्न और उपकरण पर नज़र डालनी चाहिए। राष्ट्रीय तीरंदाजी संघ द्वारा चलाए जाने वाले बेसिक कैंप में शारीरिक फिटनेस, श्वास‑प्रश्वास तकनीक और मानसिक दृढ़ता को बराबर महत्व दिया जाता है। फिर, उन्नत "आर्करी कंपाउंड" बाउंड और बैनर सेटअप के साथ प्रैक्टिस सत्र होते हैं, जहाँ हर बोल्ट को मापकर त्रुटि को न्यूनतम किया जाता है। इसके अलावा, कई राज्य स्तर के अकादमी जैसे उत्तराखंड की इंटीग्रेटेड आर्करी अकादमी, हर साल युवा तीरंदाजों को स्कॉलरशिप और अंतर्राष्ट्रीय टूर पर भेजती हैं। इससे यह साबित होता है कि "राष्ट्रीय तीरंदाजी संघ" और राज्य अकादमी मिलकर एक सपोर्ट सिस्टम बनाते हैं, जो प्रतिभा को पहचान कर पोषित करता है। यह सपोर्ट सिस्टम ही वह कारण है कि भारतीय तीरंदाज विभिन्न शैलियों—कंपाउंड, रीकॉर्ब, ब्रीफ़—में श्रेष्ठता दिखा रहे हैं।

अब आप जान गए हैं कि भारतीय तीरंदाज, उपकरण, संस्थागत समर्थन और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ कैसे आपस में जुड़ी हैं। नीचे आप विभिन्न लेखों की लिस्ट पाएँगे‑ कुछ में राष्ट्रीय तीरंदाजी संघ के नए नियमों की विस्तृत जानकारी है, तो कुछ में शीतल देवी‑राकेश कुमार की जीत की विस्तृत रिपोर्ट, और कुछ में आर्करी कंपाउंड के तकनीकी पहलू बताए गए हैं। इन पोस्टों को पढ़कर आप तीरंदाजी की दुनिया में भारत की मौजूदा स्थिति और भविष्य की दिशा दोनों समझ सकेंगे। तो चलिए, इस संग्रह के साथ आगे बढ़ते हैं और भारतीय तीरंदाजों की कहानियों में डुबकी लगाते हैं।

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पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में भारतीय तीरंदाज शीतल देवी ने कम्पाउंड रैंकिंग राउंड में किया दूसरा स्थान प्राप्त

भारतीय पैरा-आर्चर शीतल देवी, जो दुर्लभ जन्मजात विकार फोकोमेलिया से पीड़ित हैं और जिनके दोनों हाथ नहीं हैं, ने पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में अहम सफलता हासिल की। 17 वर्षीय शीतल देवी ने महिलाओं के ओपन कम्पाउंड क्वालिफिकेशन राउंड में दूसरा स्थान प्राप्त किया, और वह विश्व रिकॉर्ड से मात्र एक अंक दूर रहीं।

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