पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में भारतीय तीरंदाज शीतल देवी ने कम्पाउंड रैंकिंग राउंड में किया दूसरा स्थान प्राप्त

29

अग॰

के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)

पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में भारतीय तीरंदाज शीतल देवी ने कम्पाउंड रैंकिंग राउंड में किया दूसरा स्थान प्राप्त

शीतल देवी: अद्वितीय संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी

भारतीय पैरा-आर्चर शीतल देवी की कहानी हैरान करने वाली और प्रेरणादायक है। शीतल, जिनका जन्म जम्मू और कश्मीर के एक दूरदराज गाँव में हुआ था, ने अपनी एक दुर्लभ जन्मजात विकार फोकोमेलिया का सामना करते हुए असाधारण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। इस विकार ने उन्हें बिना हाथों के जन्म लेने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन शीतल ने अपनी इस कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया।

पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में अद्वितीय प्रदर्शन

17 वर्षीय शीतल देवी ने पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में महिलाओं के ओपन कम्पाउंड क्वालिफिकेशन राउंड में दूसरा स्थान प्राप्त किया। उन्होंने 703 अंकों के साथ विश्व रिकॉर्ड से मात्र एक अंक दूर रहकर सभी को चौंका दिया। यह सफलता उनकी कड़ी महनत और अद्वितीय कौशल का परिणाम है।

उन्होंने इस राउंड में 72 तीर चलाए और उनमें से 59 'टेंस' और 25 'एक्सस' हासिल किए। यह किसी भी प्रतिस्पर्धा में उच्च स्तर की कौशल के लिए प्रमाण है। तुर्की की तीरंदाज क्यूर गिर्डी ने 704 अंकों के साथ विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया, लेकिन शीतल के प्रदर्शन ने स्पष्ट कर दिया कि वह भी किसी से कम नहीं हैं।

प्रेरक यात्रा और संघर्ष

प्रेरक यात्रा और संघर्ष

शीतल की यात्रा उनके गाँव से शुरू होकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक फैली है। भारतीय सेना के कोचों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें प्रशिक्षण देने का जिम्मा उठाया। कोच कुलदीप वेदवान और अभिलाषा चौधरी ने उन्हें मार्गदर्शन किया और उन्हें उनके वर्ग के अद्भुत तीरंदाज अमेरिकी तीरंदाज मैट स्टुट्ज़मैन से प्रेरित होने में मदद की। शीतल ने अपने पैरों और पीठ का उपयोग करते हुए तीर चलाने की तकनीक अपनाई, जिसे उन्होंने बहुत ही अद्वितीय तरीके से निपुण किया।

उनकी इस सफलता ने उन्हें राउंड ऑफ 16 के लिए सीधे तौर पर क्वालिफाई करा दिया है, जहां वह चिली की मारियाना ज़ुनिगा और कोरिया की चोई ना मी के बीच मुकाबले के विजेता से सामना करेंगी।

अनूठी सफलताएँ

शीतल देवी ने पहले ही इतिहास रचा है। उन्होंने पैरा वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप्स में बिना हाथों वाली पहली महिला के रूप में मेडल जीता है और एक ही एशियाई पैरा खेलों के संस्करण में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी हैं।

पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में उन्होंने अपने अद्वितीय कौशल और कठिनाइयों को पार करते हुए एक बार फिर यह साबित किया है कि किसी की शारीरिक स्थिति चाहे जो भी हो, दृढ़ संकल्प और खिलवाड़ की भावना व्यक्ति को ऊँचाईयों तक पहुँचा सकती है।

भारत की अब तक की सबसे बड़ी पैरा खेलों की टीम

भारत की अब तक की सबसे बड़ी पैरा खेलों की टीम

इस बार का पेरिस पैरालंपिक्स 2024 भारतीय दल के लिए खास है, क्योंकि यह अब तक का सबसे बड़ा दल है। पिछले टोक्यो 2020 पैरालंपिक्स में भारत ने 19 मेडल जीते थे और इस बार भारतीय दल उस संख्या को पार करने के लक्ष्य के साथ उतरा है। भारतीय तीरंदाजों की यह प्रस्तुति नव ऊर्जा और आशा का संचार करती है जिससे निश्चित ही कई युवा प्रेरित होंगे।

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