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के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)
23 जुलाई, 2024 को भारतीय शेयर बाजारों में अचानक से गिरावट आई जब सरकार ने प्रतिभूति लेन-देन कर (Securities Transaction Tax) में वृद्धि का प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव का जिक्र वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024 के बजट में किया। इसका असर बाजार पर तुरंत ही देखा गया और बीएसई सेन्सेक्स 102.57 अंक गिरकर 80,502.08 पर और एनएसई निफ़्टी 21.65 अंक गिरकर 24,509.25 पर बंद हुआ।
सेन्सेक्स और निफ़्टी, दोनों ही बाजार के प्रमुख संकेतक माने जाते हैं। पिछले शुक्रवार को इन दोनों ने उच्चतम स्तर पर पहुंचकर रिकॉर्ड बनाया था। लेकिन प्रतिभूति लेन-देन कर में वृद्धि के प्रस्ताव ने निवेशकों के बीच चिंता का माहौल पैदा कर दिया। इस प्रकार की घोषणा का असर बाजार में बिकवाली के रूप में देखा गया। विशेष रूप से रिलायंस इंडस्ट्रीज और कोटक महिंद्रा बैंक में भारी बिकवाली देखी गई, जिसने बाजार में अत्यधिक दबाव उत्पन्न किया।
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में विश्लेषण किया गया था कि खुदरा निवेशकों की भागीदारी में वृद्धि हो रही है। मार्च 2024 तक, 2,500 सूचिबद्ध कंपनियों में निवेश के माध्यम से 9.5 करोड़ से अधिक खुदरा निवेशकों ने बाजार में करीब 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी बनाई, जो कि 36 लाख करोड़ रुपये के संपत्ति के रूप में देखा गया। खुदरा निवेशकों की इस सकारात्मक भागीदारी ने भी बाजार के वृद्धि में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन नए कर प्रस्ताव ने निवेशकों को बेचैन कर दिया।
वित्त मंत्री के बजट प्रस्ताव को निवेशक बहुत बारीकी से देख रहे थे। विशेष रूप से यह देखा जा रहा था कि कर और खर्च में होने वाले बदलावों का बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा। जहां एक ओर निवेशक बजट से सकारात्मक संकेतों की उम्मीद कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर प्रतिभूति लेन-देन कर की वृद्धि से उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इस प्रकार की अप्रत्याशित घोषणाओं की वजह से बाजार में अस्थिरता आना स्वाभाविक है।
आने वाले समय में, यह देखना होगा कि प्रतिभूति लेन-देन कर में वृद्धि का कुल मिलाकर बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है। यदि सरकार इस कर से हासिल राजस्व को सार्वजनिक भवन निर्माण, इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य विकास परियोजनाओं में निवेश करती है, तो इसका दीर्घकालिक प्रभाव सकारात्मक हो सकता है। लेकिन अल्पकालिक रूप में, बाजार में अस्थिरता और बिकवाली का दौर जारी रह सकता है। निवेशकों को अभी यह समझने की जरूरत है कि इस प्रकार के सार्थक बदलाव, दीर्घकालिक लक्ष्य की दृष्टि से होते हैं।
ऐसे समय में, विशेषज्ञ निवेशकों को धैर्य रखने और अपने निवेश पोर्टफोलियो का पुनर्मूल्यांकन करने की सलाह देते हैं। बाजार में अस्थिरता की स्थिति में पैनिक सेलिंग से बचना महत्वपूर्ण होता है। निवेशकों को अपनी दीर्घकालिक निवेश रणनीति पर ध्यान देना चाहिए और बाजार संकेतकों के चलते त्वरित निर्णय न लें।
इस बजट की घोषणा से उन निवेशकों के मन में संदेह पैदा हुआ है जो अब तक बाजार में उछाल का आनंद ले रहे थे। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि बाजार पर सरकार की नीतियों के दीर्घकालिक प्रभाव का भी विश्लेषण किया जाए। बाजार में अस्थिरता एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और निवेशकों को अपने निवेश के फैसले सोच-समझकर लेने चाहिए।