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के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)
ऑस्ट्रेलिया की सियासत में जबर्दस्त हलचल मची है, वजह साफ है—2025 में हुए संघीय चुनाव। ऑस्ट्रेलिया चुनाव में एंथनी अल्बनीज की लेबर पार्टी ने दोबारा सत्ता में धमाकेदार वापसी की। यह वही पार्टी है जो पिछले चुनाव में भी जोरदार फॉर्म में दिखी थी, लेकिन इस बार मुकाबला और दिलचस्प रहा। 48वीं ऑस्ट्रेलियाई संसद के गठन के लिए 3 मई को सत्ताधारी गठबंधन के खिलाफ एक बड़ा जनादेश सामने आया। कुल 150 लोकसभा और 40 सीनेट सीटों पर वोटिंग हुई, जिसमें जनता ने लेबर को साफ तौर पर चुना।
हैरत की बात यह रही कि कई जगहों पर नतीजे पूरी तरह उलट गए। खासकर क्वींसलैंड, सिडनी और उत्तरी तास्मानिया में लेबर को कोयलिशन (लिबरल-नेशनल) से 13 से ज्यादा सीटें मिलीं। सिडनी की कुछ पारंपरिक कोयलिशन सीटों पर भी इस बार लेबर की जीत ने सबको चौंका दिया। इसके अलावा, ग्रीन्स पार्टी ने ब्रिसबेन की दो सीटों पर जीत दर्ज की। इन नतीजों ने विपक्षी दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर जनता ने उन्हें नकारा क्यों।
एंथनी अल्बनीज के चेहरे पर सुकून था, क्योंकि उनकी अगुआई में लेबर पार्टी ने न केवल जनता का भरोसा दोबारा जीता, बल्कि पुराने रिकॉर्ड भी तोड़ दिए। चुनाव के बारे में मशहूर विश्लेषक एंटनी ग्रीन ने मतदान बंद होने के तीन घंटे के भीतर ही रुझान देखकर दावा कर दिया था कि लेबर रेस में सबसे आगे है। यह अनुमान तेजी से सच साबित हुआ, काउंटिंग में लेबर की सीटें लगातार बढ़ती गईं।
इस चुनाव में न सिर्फ ऑस्ट्रेलिया के भीतर रहने वाली जनता, बल्कि विदेश में बसे ऑस्ट्रेलियाई भी खूब सक्रिय रहे। 22 अप्रैल से ही दुनिया के कई शहरों जैसे मैड्रिड और नई दिल्ली में ऑस्ट्रेलियन दूतावासों में विशेष वोटिंग हुई। डाक के जरिए भी हजारों लोगों ने अपनी पसंद की सरकार चुनने में हिस्सा लिया। मतदान का माहौल कुछ ऐसा था कि चुनाव आयोग को हर दिन नए रिकॉर्ड दर्ज करने पड़े।
तमाम राजनीतिक बहसों में सबसे बड़ा मुकाबला दो नेताओं के बीच था—एंथनी अल्बनीज (लेबर) और पीटर डटन (कोयलिशन)। पीटर डटन के लिए यह चुनाव परेशानियों भरा साबित हुआ, क्योंकि उनकी खुद की डिक्सन सीट पर हार की आशंका बन गई थी। वहीं अल्बनीज ने समर्थकों के मन में दोबारा भरोसा जगाया।
चुनाव प्रक्रिया बेहद सुस्पष्ट और सुनियोजित रही। 31 मार्च को चुनावी प्रक्रिया का एलान हुआ, 10 अप्रैल को नामांकन बंद, 30 अप्रैल तक डाक वोट के लिए आवेदन स्वीकार किए गए और 3 मई को मतदान हुआ। चुनाव के ठीक बाद 4 मई तक करीब 77% वोटों की गिनती हो चुकी थी। हालांकि 16 सीटों पर रिजल्ट फंसा रहा—ज्यादातर विक्टोरिया में—जिससे कुछ सस्पेंस बना रहा कि आखिर अंतिम बहुमत का गणित कैसा रहेगा।
राजनीतिक गलियारों की बात करें तो, इस बार वोटिंग ट्रेंड में तह तक बदलाव नजर आया। युवाओं और प्रवासी ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों का समर्थन खासतौर पर एंथनी अल्बनीज की पार्टी के लिए वरदान साबित हुआ। पार्टी की नीतियां और अल्बनीज की छवि ने बड़े शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी लोगों का बड़ा भाग आकर्षित किया।
अब देखना यह है कि लेबर पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में आकर किन नए प्रयोगों की शुरुआत करती है और किस तरह ऑस्ट्रेलिया का राजनीतिक नक्शा बदलता है। इस चुनाव से यह तो साफ हो गया कि देश की जनता अब बदलाव चाहती है और इसी बदलाव ने एंथनी अल्बनीज को दोबारा प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया।