मिसाइल मैन: डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की प्रेरणादायक कहानी

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के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)

मिसाइल मैन: डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की प्रेरणादायक कहानी

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम: प्रारंभिक जीवन और संघर्ष

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था। उनका बचपन बहुत ही साधारण था और वे वित्तीय कठिनाइयों से जूझते हुए बड़े हुए। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन उन्होंने इससे हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रामनाथपुरम श्वार्त्ज मैट्रिकुलेशन स्कूल से प्राप्त की।

डॉ. कलाम की वैज्ञानिक पथ पर यात्रा रामेश्वरम के एक नदी के किनारे से शुरू हुई, जब उन्होंने दुस्वप्न प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक ब्रिटिश विमान को उड़ते हुए देखा। इस घटना ने उनके मन में वैमानिकी विज्ञान के प्रति रुचि को जागृत किया। इसके बाद, उन्होंने भौतिकी में स्नातक की डिग्री पूरी करने के बाद मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रवेश प्राप्त किया। वहां से उन्होंने वैमानिकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।

वैमानिकी विज्ञान में प्रमुख योगदान

मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से स्नातक करने के बाद, डॉ. कलाम ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) में शामिल हुए। यहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में योगदान दिया और भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण वाहन, एसएलवी-3, के विकास में अहम भूमिका निभाई। यह परियोजना भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक प्रमुख स्थिति दिलाने में सहायक सिद्ध हुई।

डॉ. कलाम की अद्वितीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नेतृत्व ने भारत को प्रक्षेपण यान और मिसाइल विकास क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया। उन्होंने पृथ्वी और अग्नि जैसी मिसाइलों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन मिसाइलों की विकास ने भारत की सैनिक क्षमताओं को न केवल बढ़ाया, बल्कि देश की सुरक्षा को भी सुदृढ़ किया।

भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने वैज्ञानिक करियर के बाद 2002 से 2007 तक भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में सेवा की। राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल न केवल देश की राजनीति बल्कि विज्ञान और तकनीक के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण था। उन्होंने हमेशा शिक्षा और शोध को प्रोत्साहित किया और युवाओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहे।

उनके राष्ट्रपति बनने के दौरान ही उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा गया। यह सम्मान उनके वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में अद्वितीय योगदान को दर्शाता है। डॉ. कलाम का राष्ट्रपति कार्यकाल भारतीय नागरिकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय रहा।

डॉ. कलाम की विरासत और योगदान

डॉ. कलाम के निधन के बावजूद, उनका योगदान और कार्य आज भी जीवित हैं। उनके विचारों और सपनों ने अनगिनत भारतीयों को प्रेरित किया है और वे आज भी युवाओं के लिए एक मार्गदर्शक बने हुए हैं। उनका जीवन संघर्ष, परिश्रम और सेवा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

उन्होंने लिखा, 'सपने वो नहीं होते जो आप सोते समय देखते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।' यह विचार आज भी हर युवा के दिलों में जीवित है और उन्हें अपने सपनों के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है।

निधन और उनकी अमरता

27 जुलाई, 2015 को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का अचानक निधन हो गया। वे भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलांग में एक व्याख्यान के दौरान गिर गए और बाद में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने समस्त राष्ट्र को गहरे शोक में डाल दिया। लेकिन उनके विचार, योगदान और शिक्षाएं हमेशा हम सबके बीच जीवित रहेंगी।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन की कहानी हमें यह सिखाती है कि बड़े सपने देखने और सहारे से दूर कठोर परिश्रम करके ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। उनकी प्रेरणा से भारतीय युवा विज्ञान और तकनीक में नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं और उनकी विरासत हमेशा हमारी आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देती रहेगी।

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