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के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)
भारत की प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं की कंपनी इन्फोसिस इन दिनों एक बड़े विवाद में फंसी हुई है। अंदरूनी दस्तावेजों के मुताबिक, कंपनी पर जीएसटी अधिकारियों ने 32,000 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का गंभीर आरोप लगाया है। इस जांच का मुख्य कारण इन्फोसिस की विदेशी शाखाओं से प्राप्त सेवाओं पर IGST का भुगतान नहीं करना है।
IGST यानि इंटीग्रेटेड गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स एक ऐसा टैक्स है जो देश के अंदर एक राज्य से दूसरे राज्य में किये गए व्यापार पर लगाया जाता है। रिवर्स चार्ज मेकेनिज्म का मतलब है कि टैक्स का भुगतान सेवाओं के प्राप्तकर्ता द्वारा किया जाता है, न कि सेवा प्रदाता द्वारा।
डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (डीजीजीआई) का कहना है कि इन्फोसिस को रिवर्स चार्ज मेकेनिज्म के तहत अपने विदेशी शाखाओं से मिली सेवाओं पर जीएसटी अदा करना चाहिए था। इस संदर्भ में, कर्नाटक राज्य जीएसटी अधिकारियों और डीजीजीआई ने जुलाई 2017 से मार्च 2022 तक के अवधि को कवर करते हुए एक नोटिस जारी किया है।
अपने पक्ष में प्रस्तुत करते हुए, इन्फोसिस ने स्पष्ट किया है कि उसने अपने सभी जीएसटी दायित्वों का पूर्ण रूप से पालन किया है और वह राज्य और केंद्रीय नियमों का पूरी तरह से पालन करती है। कंपनी का यह भी कहना है कि हाल ही में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा जारी एक सर्कुलर के अनुसार, इन सेवाओं पर जीएसटी लागू नहीं होता है।
जैसे ही यह खबर सार्वजनिक हुई, इन्फोसिस के शेयरों में 1% की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब इन्फोसिस जीएसटी विभाग के साथ किसी विवाद में उलझी हो। इससे पहले, अप्रैल में ओडिशा जीएसटी अथॉरिटी ने कंपनी पर 1.46 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, गलत इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने के आरोप में।
इन्फोसिस का जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) पोर्टल का प्रबंधन भी जांच के केंद्र में है, जिससे इस मामला की गम्भीरता और बढ़ जाती है। जीएसटीएन पोर्टल पर सभी कंपनियों और व्यापारियों को अपनी जीएसटी से संबंधित सभी जानकारी देना होती है। ऐसे में, एक प्रमुख आईटी कंपनी जैसे इन्फोसिस पर टैक्स चोरी के आरोप लगना निश्चित रूप से चिंता का कारण है।
इस मामले का निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से समाधान होना जरूरी है। यदि इन्फोसिस दोषी है तो इसे अपने दायित्वों को पूर्ण करना चाहिए, और यदि नहीं तो इसकी बेगुनाही सिद्ध होनी चाहिए। हालांकि, समय के साथ ही स्पष्ट हो पाएगा कि इस मामले में अंतिम परिणाम क्या होगा।