भारतीय सांसद द्वारा शपथ ग्रहण के दौरान 'जय पलेस्तीन' का नारा लगाने पर विवाद

27

जून

के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)

भारतीय सांसद द्वारा शपथ ग्रहण के दौरान 'जय पलेस्तीन' का नारा लगाने पर विवाद

भारतीय संसद में 'जय पलेस्तीन' के नारे से उत्पन्न विवाद

भारतीय संसद की 18वीं लोकसभा के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान असदुद्दीन ओवैसी ने 'जय पलेस्तीन' का नारा लगाकर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया। ओवैसी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष हैं और पिछले पांच बार से तेलंगाना से सांसद चुने जा रहे हैं। उनके इस नारे ने सत्तारूढ़ दल के नेताओं के बीच गुस्सा और विरोध शुरू कर दिया।

ओवैसी द्वारा 'जय पलेस्तीन' नारे को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कई नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि शपथ संविधान के प्रति ली जाती है और किसी विदेशी देश के समर्थन में नारा लगाना गलत है। बीजेपी के नेता अमित मालवीय ने यह तक कहा कि ओवैसी को विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा दिखाने के कारण लोकसभा सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा सकता है।

विवाद की प्रतिक्रिया

दिल्ली के एक वकील ने भारतीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस मुद्दे पर पत्र भी लिखा। लेकिन ओवैसी अपने बयान पर अडिग रहे। उन्होंने कहा कि उन्हें भारतीय संविधान की अच्छी जानकारी है और किसी भी प्रकार की धमकियों से उनकी हिम्मत नहीं टूटेगी।

संवैधानिक शपथ और समर्थन

ओवैसी ने आगे कहा कि उन्होंने संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर और अपने राज्य तेलंगाना का भी समर्थन किया। ओवैसी के इस बयान ने राजनीतिक वातावरण को और भी गरम कर दिया। विभिन्न दलों और धार्मिक समूहों के लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रियाएँ दीं और सोशल मीडिया पर इसकी व्यापक चर्चा हुई।

राजनीतिक माहौल पर प्रभाव

राजनीतिक माहौल पर प्रभाव

इस घटना ने न केवल राजनीतिक हलकों में बल्कि आम जनता के बीच भी विवाद को जन्म दिया है। सोशल मीडिया पर भाजपा के समर्थकों ने ओवैसी के इस कदम की कड़ी आलोचना की, जबकि कुछ अन्य लोग उनके साहस की प्रशंसा कर रहे हैं। इस विवाद ने संसद में और भी कई मुद्दों को जन्म दिया है, जो आने वाले समय में देखे जा सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना भारतीय राजनीति में एक नए तरह के रुझान को दर्शा रही है। सभ्यता और कानून के दायरे में रहते हुए यह देखना होगा कि इस विरोध का अंत किस प्रकार होगा और इसका भारतीय राजनीतिक संतुलन पर क्या असर पड़ेगा।

संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण

संविधान विशेषज्ञों के अनुसार, शपथ ग्रहण समारोह में किसी प्रकार की अनुचित भाषा या नारा लगाने से संवैधानिक अनुशासन का उल्लंघन होता है। इस प्रकार के अनुशासनहीनताओं का समाधान संसद और न्यायपालिका के माध्यम से किया जाना चाहिए।

यह मामला सांसदों और नागरिकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि संविधान और विधायिका के नियमों का पालन सर्वोपरि है। संसद में इस विषय पर व्यापक चर्चा और संवाद होना चाहिए जिससे भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

भारतीय लोकतंत्र की ताकत

भारतीय लोकतंत्र की ताकत

यह घटना भारतीय लोकतंत्र की ताकत और उसकी सहिष्णुता को भी दर्शाती है। यहां पर हर प्रकार के विचारों और मान्यताओं के लिए जगह है, लेकिन यह भी जरूरी है कि सभी अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझें और उनका अनुशरण करें।

शपथ ग्रहण की घटनाएं और विवाद भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण हैं और यह विभिन्न विचारधाराओं और उनकी सहिष्णुता की उद्घोषणा भी हैं।

एक टिप्पणी लिखें