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के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)
भारत के प्रमुख उद्यमियों में से एक, आनंद महिंद्रा, जो महिंद्रा समूह के अध्यक्ष हैं, ने हाल ही में एक विवादास्पद टिप्पणी के बाद अपने विचार व्यक्त किए। यह टिप्पणी लार्सन एंड टुब्रो के अध्यक्ष एसएन सुब्रह्मण्यन की थी, जिन्होंने 90-घंटे कार्य सप्ताह का सुझाव दिया था। सुब्रह्मण्यन ने कर्मचारियों को सप्ताह के सभी सात दिन काम करने और यहां तक कि रविवार को भी ऑफिस जाने के लिए प्रेरित किया था। इसके साथ उन्होंने कुछ ऐसा कहा जो कई लोगों को अप्रिय लगा - उन्होंने पूछा कि कैसे कोई अपनी पत्नी को "घूर" कर देखकर तंग नहीं आता। इस टिप्पणी ने जोर शोर से विवाद को जन्म दिया।
आनंद महिंद्रा ने इस विचारधारा का विरोध करते हुए कहा कि काम के घंटों की संख्या से अधिक, काम की गुणवत्ता महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने विक्सित भारत युवा नेतृत्व संवाद 2025 में यह विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने स्पष्टता से कहा कि एक व्यक्ति तभी बेहतर निर्णय ले सकता है जब वह जीवन के हर पहलू को बराबरी से महत्त्व दे और न केवल काम। उनका दावा है कि वे सोशल मीडिया का उपयोग व्यापार करने के लिए करते हैं, न कि इसलिए कि वे अकेले हैं।
महिंद्रा ने मजाक में कहा कि "मेरी पत्नी अद्भुत है, मुझे उसे देखकर खुशी होती है," यह वाक्य सीधे तौर पर सुब्रह्मण्यन के बयान पर तंज कस रहा था। उनका यह भी कहना है कि यह बहस गलत दिशा में जा रही है। घंटों की संख्या पर नहीं बल्कि काम की गुणवत्ता पर बातचीत होनी चाहिए। महिंद्रा का मानना है कि परिवार के साथ समय बिताना, मित्रों के संग समय बिताना, पुस्तकें पढ़ना और विचारशील बनना भी महत्वपूर्ण है।
कार्य घंटों की इस बहस की शुरुआत इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने की थी, जब उन्होंने सुझाव दिया कि युवाओं को 70 घंटे का कार्य सप्ताह करना चाहिए। इसके बाद सुब्रह्मण्यन की टिप्पणी ने इस विवाद को और हवा दे दी। इससे ऐसे कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने के आरोप लगे जो अस्वास्थ्यकर हैं और कार्य-जीवन संतुलन को कमजोर करते हैं। राजीव बजाज, जो बजाज ऑटो के प्रबंध निदेशक हैं, समेत कई उद्योग नेताओं ने इस सुझाव का विरोध किया है, यह स्पष्ट करते हुए कि इस तरह की नीतियां सबसे पहले उच्च स्तर से लागू की जानी चाहिए।
आनंद महिंद्रा के इन्ही बयानों से यह स्पष्ट होता है कि संतुलित जीवन कितना महत्त्वपूर्ण है। व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में संतुलन बनाकर ही व्यक्ति सही निर्णय ले सकता है और इसीलिए कार्य की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए न कि घंटों की संख्या पर। यह विवाद दिखाता है कि भारतीय कॉर्पोरेट का एक हिस्सा कितना तेजी से बदल रहा है और कर्मचारियों के लिए सही कार्य-जीवन संतुलन कितनी महत्ता रखता है।