जब हम वित्तीय वर्ष भारत में प्रत्येक अप्रैल से मार्च तक चलने वाली 12‑महीनों की लेखा‑जाँच अवधि है, जिसमें सरकारी बजट, मौद्रिक नीति और बाजार का समग्र मूल्यांकन किया जाता है की बात करते हैं, तो कई प्रमुख संकेतक साथ आते हैं। निफ़्टी 50 मुख्य 50 कंपनियों का शेयर‑इंडेक्स, जो वित्तीय वर्ष के अंत में बाजार की दिशा दर्शाता है और सोना कीमत धातु बाजार में सबसे भरोसेमंद निवेश विकल्प, जिसका मूवमेंट बजट घोषणा के बाद तेज़ी से बदलता है अक्सर साथ मिलते हैं। इसी तरह, MCX भारतीय वस्तु बाजार एक्सचेंज, जहाँ सोना‑चांदी और अन्य कमोडिटी की दरें तय होती हैं भी इस समय केंद्र में रहता है। ये सभी तत्व वित्तीय वर्ष के आर्थिक परिप्रेक्ष्य को आकार देते हैं।
वित्तीय वर्ष में निफ़्टी 50 के उतार‑चढ़ाव को अक्सर केंद्रीय बजट में आय‑व्यय असंतुलन का असर दिखता है; जब सरकार खर्च बढ़ाती है, तो शेयर‑बाजार में उछाल आती है, और उसके विपरीत भी। उसी समय, बैंकिंग स्टॉक की प्रदर्शनशीलता मौद्रिक नीति के बदलाव से निकटता से जुड़ी होती है। रिज़र्व बैंक की रेपो दर में हल्की वृद्धि या कटौतियाँ बैंकों की लोन‑वृद्धि को सीधे प्रभावित करती हैं, जिससे शेयर‑इंडेक्स में बदलाव स्पष्ट हो जाता है। इस प्रकार, वित्तीय वर्ष में नीति‑निर्माताओं के कदम और बाजार की प्रत्याशा आपस में जुड़े होते हैं (वित्तीय वर्ष ↔ बजट → निफ़्टी ↔ बैंकिंग स्टॉक)।
सोने की कीमतों पर नजर रखें तो पता चलता है कि निवेशक आर्थिक अनिश्चितता के समय में सुरक्षित आश्रय की तलाश में कैसे रुख बदलते हैं। जब वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में महंगाई की चिंता बढ़ती है, तो MCX पर सोना‑चांदी के वॉलेट में झिलमिला उठता है। उदाहरण के तौर पर, पिछले साल करवा चौथ के आसपास सोना की कीमत गिरकर चांदी की बढ़त ने निवेशकों को वैकल्पिक विकल्प देने का काम किया। इस प्रकार, सोना कीमत और MCX की चालें वित्तीय वर्ष के दौरान पूंजी‑प्रवाह को दिशा देती हैं (वित्तीय वर्ष → सोना ↔ MCX → निवेश‑रुझान)।
एक और महत्वपूर्ण पहलू है राज्य‑स्तर की नीतियां और उनका राष्ट्रीय बजट पर असर। कई राज्यों में कृषि‑सभीविनिर्माण योजनाओं के बजट आवंटन से ग्रामीण अर्थव्यवस्था की गति बदलती है, जिससे खाद्य‑उत्पादन कंपनियों के शेयर में उतार‑चढ़ाव देखा जाता है। इन कंपनियों की वृद्धि अक्सर निफ़्टी के सेक्टर‑वजन में परिलक्षित होती है, यानी वित्तीय वर्ष की योजना बनाते समय शेयर‑बाजार के प्रत्येक प्रमुख सेक्टर को नजर में रखना जरूरी है।
इन सभी बिंदुओं को समझने से आप वित्तीय वर्ष के भीतर आने वाली अवसरों और जोखिमों का बेहतर आकलन कर सकते हैं। नीचे आप देखेंगे कई लेख जो निफ़्टी 50, सोना कीमत, MCX और बैंकिंग स्टॉक्स के नवीनतम रुझानों को विस्तार से बताते हैं, साथ ही बजट‑सम्बंधित विश्लेषण और बाजार‑प्रभाव के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। तैयार हो जाइए, क्योंकि यह संग्रह आपको वित्तीय वर्ष के हर मोड़ पर जानकारी‑आधारित निर्णय लेने में मदद करेगा।
के द्वारा प्रकाशित किया गया Amit Bhat Sarang साथ 0 टिप्पणियाँ)
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने वित्तीय वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में अपने समेकित शुद्ध मुनाफे में 4.78% की गिरावट दर्ज की है। इस अवधि के लिए कंपनी का शुद्ध मुनाफा 16,563 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 17,394 करोड़ रुपये था। हालांकि, कंपनी की कुल आय में 0.65% की मामूली वृद्धि हुई है, जो 2,40,357 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।
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