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के द्वारा प्रकाशित किया गया राजेश मालवीय साथ 0 टिप्पणियाँ)
ईशा फाउंडेशन और उसके संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव एक बार फिर चर्चा में हैं। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें फाउंडेशन पर दो महिलाओं की जबरन हिरासत और पुलिस जांच का आदेश था। इससे पहले एक पिता ने अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि उसकी बेटियां तोंडामुथुर स्थित ईशा आश्रम में उनकी इच्छा के विरुद्ध रखी गई हैं।
इस याचिका के बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर करीब 150 पुलिसकर्मियों की टीम, जिसमें शीर्ष अधिकारी भी शामिल थे, ने आश्रम में पहुंचकर जांच-पड़ताल की। पुलिस ने वहाँ सभी रहवासियों के पहचान पत्र चेक किए और सीधा सवाल किया कि वे अपनी इच्छा से वहाँ रह रहे हैं या नहीं। फाउंडेशन की ओर से शुरू से ही यही कहा गया कि यह महज औपचारिक जांच थी, जो अदालत के निर्देश के बाद की जा रही थी।
मामला तब नया मोड़ ले गया जब जांच में पता चला कि दोनों महिलाएं खुद अपनी मर्जी से आश्रम में हैं और कहीं जाने का उन पर कोई बाहरी दबाव नहीं है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को रद्द किया बल्कि केस को भी बंद कर दिया।
ईशा फाउंडेशन किसी न किसी वजह से अक्सर विवादों में रहा है। इससे पहले भी फाउंडेशन पर यौन उत्पीड़न के मामलों को ठीक से न सुलझाने के आरोप लगे थे। मीडिया में आई खबरों के बाद फाउंडेशन ने कई न्यूज पोर्टलों के खिलाफ मानहानि के मुकदमे भी दायर किए।
ऐसे मामलों ने फाउंडेशन की छवि पर असर डाला, लेकिन हर बार संस्था ने अपनी सफाई दी है। अधिकारियों का कहना है कि आश्रम में कोई जबरन नहीं रखा जाता और सभी निवासी अपने संपूर्ण अधिकार और आज़ादी के साथ वहां रहते हैं। पुलिस जांच के नतीजे भी इसी बात की तस्दीक करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश न सिर्फ ईशा फाउंडेशन बल्कि उन तमाम धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं के लिए एक मिसाल है, जिनपर गाहे-बगाहे ऐसे गंभीर आरोप लगते रहते हैं। अब देखना यह है कि भविष्य में ऐसे मामलों पर अदालत की नजर और आम लोगों की राय किस तरह बनती है।