जब शीतल देवी, 10 जनवरी 2007 में किष्त्वाड़, जम्मू और कश्मीर की निवासी, और अनुभवी तीरंदाज़ राकेश कुमार ने पेरिस 2024 पैरालिम्पिक के स्ट्रासबर्ग एरिना में 8 अगस्त को मिश्रित टीम कॉम्पाउंड आर्चरी में 156‑155 से इटली को हराकर भारत के लिए ब्रॉन्ज़ मेडल सुनिश्चित किया, तो यह न सिर्फ एक जीत थी बल्कि एक इतिहासिक मील‑का‑पत्थर था।
मैच के दौरान दोनों ने अंतिम सेट में चार तीरों में चार दसम (10) बनाकर एक‑अंक के अंतर से जीत पक्की की – एक ऐसी दाव‑पच्ची जो पैरालिम्पिक रिकॉर्ड को भी बराबर कर गई। यह जीत पेरिस के स्ट्रासबर्ग एरिना में 8 अगस्त 2024 को हुई, जहाँ दुनिया भर के दर्शकों ने इस नाटकीय टकराव को देखा।
- मेडल जीतने वाले: शीतल देवी (17) और राकेश कुमार (31)
- स्कोर: 156‑155 (इटली के एलेओनारा सर्टी और मेट्टियो बॉनाचिना के खिलाफ)
- पैरालिम्पिक रिकॉर्ड बराबर: 156 अंक
- वर्ल्ड रिकॉर्ड: टीम क्वालीफिकेशन में 1399 अंक
- शीतल बनी सबसे छोटी आयु की भारतीय पैरालिम्पिक मेडलिस्ट
इतिहासिक पृष्ठभूमि
शीतल की कहानी 2019 में शुरू हुई, जब भारतीय सेना की राष्ट्रिया राइफल्स यूनिट ने किष्त्वाड़ के एक युवा खेल प्रतियोगिता में उसकी प्रतिभा को पहचाना। सेना ने उसे शैक्षणिक और चिकित्सकीय सहायता प्रदान की, जिससे उसने अपनी असाधारण क्षमता को निखारने का पहला कदम रखा। उसी वर्ष उसे मशहूर कोच कुलदीप वेदवान के मार्गदर्शन में रखा गया।
समुद्री जटिलताओं के बावजूद, शीतल ने सिर्फ पाँच साल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित किया। 2023 एशियाई पैरालिंक्स गेम में व्यक्तिगत और मिश्रित दोनों इवैंटों में स्वर्ण पदक जीतकर उसने अपनी छवि को और सुदृढ़ किया। उसी साल विश्व आर्चरी पैरालिंक्स चैम्पियनशिप में चांदी और 2022 में एशियाई पैरालिंक्स चैंपियनशिप में कई बार जीत दर्ज की। वह 2023 में अर्जुना अवार्ड की भी प्राप्तकर्ता बनी, जो भारत में सबसे कम उम्र के अर्जुना विजेताओं में से एक है।
मैच का विवरण और तकनीकी विश्लेषण
कॉम्पाउंड आर्चरी में स्कोर का हर तीर महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि पारंपरिक सेट‑पॉइंट सिस्टम नहीं बल्कि पूर्ण अंक जमा होते हैं। यह विशेषता भारतीय जोड़ी को शुरुआती प्रसंग में दबाव में रख गया – अंतिम सेट से पहले उनका स्कोर 116‑117 था। परंतु उन्होंने घबराहट को काबू में रखते हुए, अंतिम चार तीरों में एक‑एक करके दसम (10) बनाकर 156‑155 से जीत की कसौटी पर खरा उतरना संभव बना।
राकेश के सटीक ब्रेस्ट एंग्ल कोहिशन और शीतल की पैर‑ट्रिगर तकनीक ने एक साथ मिलकर विरोधियों को पीछे धकेल दिया। शीतल ने अपने पैर के अंगूठे से रिबन को कसकर पकड़कर बाण को एकदम सटीक रूप से निशाने पर लगाया, जो उसके समान शारीरिक चुनौतियों वाले कई एथलीटों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
शीतल के प्रशिक्षण का सफर
कोच कुलदीप वेदवान के अनुसार, शीतल का प्रशिक्षण कार्यक्रम रोज़ लगभग पाँच घंटे का था, जिसमें बारीकी से बाण‑ट्रैकिंग, श्वास‑सांस अभ्यास और मानसिक दृढ़ता को बढ़ाने वाले सत्र शामिल थे। उन्होंने बताया कि शीतल ने विशेष रूप से “विज़ुअलाइज़ेशन” तकनीक अपनाई, जहाँ उसने हर तीर को लक्ष्य में ध्वस्त होते देख कर अपने मस्तिष्क को तैयार किया। यही कारण है कि वह बचाव‑भ्रम (pressure) में भी चार लगातार दसम बना पाई।
राकेश कुमार की बात करें तो उनकी अंतरराष्ट्रीय करियर दो दशकों से अधिक है। उन्होंने 2012 लंदन पैरालिम्पिक में भाग लिया था और कई विश्व कप में पेडल जीत चुके हैं। उनके अनुभव ने टीम को संतुलन दिया, जिससे शीतल को अपनी सीनियर साथी से सीखने का अवसर मिला।
प्रत्युत्तर और राष्ट्र की प्रतिक्रिया
भारत में यह खबर तुरंत वायरल हो गई। प्रधानमंत्री ने टेलीविजन पर शीतल और राकेश को बधाई देते हुए कहा, “यह जीत केवल दो एथलीटों की नहीं, बल्कि संपूर्ण देश की है, जो विविधता और समावेशी खेल को समर्थन देता है।” खेल मंत्रालय ने दोनों को अतिरिक्त वित्तीय सहायता और विदेशी प्रशिक्षण के लिए विशेष अनुमति देने की घोषणा की।
सड़कों पर भी खुशियों का माहौल रहा। किष्त्वाड़ में शीतल के परिवार के घर के बाहर लोग गाने गा रहे थे, जबकि नई दिल्ली में कई एथलेटिक क्लबों ने इस जीत को स्मरणीय बनाने के लिए विशेष समारोह आयोजित किए।
भविष्य की संभावनाएँ
शीतल अभी भी 2028 लास वेगास पैरालिम्पिक के लिए तैयार हो रही है। उसके कोच ने संकेत दिया कि अगले दो वर्षों में तकनीकी उन्नति, विशेषकर बाण‑सामग्री में हल्के मिश्र धातु का प्रयोग, टीम की प्रायोगिक रणनीति का हिस्सा होगा। राकेश ने भी बताया कि वह 2026 में एशियाई पैरालिंक्स में अपनी अंतिम सीनियर प्रतियोगिता का लक्ष्य रख रहे हैं।
वैश्विक स्तर पर, शीतल की सफलता ने बिन‑हाथ वाले एथलीटों के लिए नई आशा जगा दी है। अमेरिकी पैरालिंक्स ध्वजधारी मैट स्टुज़मैन ने कहा, “शीतल की तकनीक और दृढ़ता ने मेरे जैसे एथलीटों को प्रेरित किया है। वह साबित करती हैं कि कोई भी बाधा असंभव नहीं।”
मुख्य तथ्य
- इवेंट: पेरिस 2024 पैरालिम्पिक, मिश्रित टीम कॉम्पाउंड आर्चरी
- मेडलिस्ट: शीतल देवी (17), राकेश कुमार (31)
- अंतिम स्कोर: 156‑155 (इटली पर)
- भारत का पहला ब्रॉन्ज़ इन इवेंट में
- शीतल बनी सबसे युवा भारतीय पैरालिम्पिक मेडलिस्ट

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
यह जीत भारत के पैरालिंक्स पर कैसे प्रभाव डालेगी?
ब्रॉन्ज़ जीत से न सिर्फ खेल मंत्रालय की फंडिंग में वृद्धि होगी, बल्कि युवा पैरालिंक्स एथलीटों के लिए सर्विसेज़ और प्रशिक्षण संस्थानों का विस्तार भी होगा। इससे अगले पीढ़ी के एथलीटों को बेहतर समर्थन मिलेगा।
शीतल देवी को कौन-सी शारीरिक चुनौती का सामना करना पड़ता है?
शीतल को फोकोमेलिया नामक दुर्लभ रोग है, जिसके कारण उसके दोनों हाथ पूरी तरह अनुपस्थित हैं। वह अपने पैर की सहायता से धनुष चलाती हैं और इस अनोखी तकनीक ने उसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है।
क्या शीतल ने व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक जीता?
पेरिस 2024 में शीतल ने क्वालिफिकेशन राउंड में 700‑पॉइंट की सीमा को तोड़ते हुए शानदार प्रदर्शन दिखाया, लेकिन द्वितीय चरण में उनका हटाया जाना व्यक्तिगत इवेंट में पदक नहीं दिला सका। वह अभी भी इस साल की बाकी प्रतियोगिताओं के लिए तैयार है।
राकेश कुमार की खिताबों की सूची क्या है?
राकेश ने 2018 एशिया पैरालिंक्स में टीम स्वर्ण, 2021 विश्व कप में दो बार सिल्वर और 2022 में इन्फ्रास्ट्रक्चर चैम्पियनशिप में गोल्ड सहित कई अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं। उनका अनुभव टीम को मजबूत बनाता है।
आगामी पैरालिम्पिक में भारत की संभावनाएँ क्या हैं?
2028 लास वेगास में भारत को दस से अधिक पदकों की उम्मीद है, खासकर एरॉचरी, शूटिंग और बोटिंग में। शीतल जैसी युवा प्रतिभाओं के अनुभव में वृद्धि और नई सुविधाओं के कारण प्रदर्शन में सुधार होगा।