दिल्ली की लोकसभा में 8 दिसंबर, 2025 को शाम के समय तक एक ऐसी बहस चली जिसने सिर्फ एक गीत को नहीं, बल्कि देश के इतिहास, राजनीति और वर्तमान असंतोष को एक साथ जोड़ दिया। वंदे मातरम् के 150वें वर्षगांठ के अवसर पर लोकसभा में तीन घंटे की विशेष चर्चा हुई — जिसमें नरेंद्र मोदी ने गीत को 'एक पवित्र युद्ध घोषणा' बताया, तो कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि इस बहस का मकसद देश के बुनियादी समस्याओं से ध्यान भटकाना है। ये सिर्फ एक गीत की याददाश्त नहीं थी — ये एक राजनीतिक ताकत का दर्शन था।
गीत नहीं, एक आंदोलन की आवाज
दोपहर 12:17 बजे नरेंद्र मोदी ने बहस शुरू की। उन्होंने कहा, "वंदे मातरम् सिर्फ एक राष्ट्रीय गीत नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन के अवशेषों को देश से निकालने की एक पवित्र युद्ध घोषणा थी।" उन्होंने याद दिलाया कि बंगाल को अंग्रेजों ने 'विभाजित करो और शासन करो' की नीति का प्रयोग करने का प्रयोगशाला बना दिया था, लेकिन इसी जगह से वंदे मातरम् ने एकता की आवाज उठाई। उनका दावा था कि उस समय लुग्दी से लेकर जहाज तक — हर चीज पर इस गीत के शब्द लिखे जाते थे। ये एक आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।
रक्षा मंत्री का गुस्सा और कांग्रेस की आलोचना
राजनाथ सिंह ने दूसरे स्पीकर के रूप में बात की। हालांकि उनका भाषण राष्ट्रीय एकता पर था, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, वे विपक्ष के सदस्यों के साथ इतने गुस्से में आ गए कि उनकी आवाज में तनाव साफ दिखा। विपक्ष के तरफ से प्रियंका गांधी वाड्रा ने सीधे तौर पर कहा, "बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी चल रही है, देश भर में लोग मारे जा रहे हैं — लेकिन सरकार इन मुद्दों से बचकर एक 150 साल पुराने गीत पर बहस कर रही है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि देश के लोग खुश नहीं हैं, वे अर्थव्यवस्था, रोजगार और आधारभूत सेवाओं के लिए लड़ रहे हैं।
अखिलेश और समाजवादी का संदेश: एकता की अपील
अखिलेश यादव की भागीदारी की पुष्टि अवधेश प्रसाद ने की, जिन्होंने कहा, "वंदे मातरम् एकता, अखंडता और भाईचारे का संदेश लेकर आया है — यही आज हमें देश को मजबूत करने के लिए चाहिए।" ये बयान अलग तरह से प्रभावी था — क्योंकि यह एक ऐसे नेता का था जो अक्सर सरकार के खिलाफ आवाज उठाता है। उनका ये संदेश विपक्ष के बीच भी एक अलग रंग ला रहा था।
विपक्ष की आलोचना: 'समय बर्बाद'
लेकिन बहस के बीच एक अलग आवाज भी उठी। पप्पू यादव, एक स्वतंत्र सांसद, ने कहा, "जब दुनिया शुद्ध जल, स्वच्छ हवा और आर्थिक स्वतंत्रता पर बात कर रही है, तो हम 150 साल बाद एक गीत पर बहस कर रहे हैं।" ये बात युवाओं के बीच भी गूंज रही थी। कई छात्र ने सोशल मीडिया पर प्रश्न उठाए — क्या ये गीत अब भी राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, या बस एक राजनीतिक उपकरण बन गया है?
वंदे मातरम्: इतिहास और विवाद
वंदे मातरम् का रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी थे, जिन्होंने 1875 में इसे अपने उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया। रवींद्रनाथ टैगोर ने इसकी धुन तैयार की। लेकिन इसकी राजनीति कभी साधारण नहीं रही। 1937 में कांग्रेस के फैजाबाद अधिवेशन में, गीत के कुछ स्तरों को हटा दिया गया था — जिसे मोदी ने बार-बार आलोचित किया है। उनका दावा है कि इससे गीत का धार्मिक और सांस्कृतिक आयाम धुंधला हो गया। विपक्ष इसे राजनीतिक इतिहास को बदलने की कोशिश बताता है।
राज्यसभा की बहस: अमित शाह और खर्गे का सामना
लोकसभा की बहस के अगले दिन, 9 दिसंबर को राज्यसभा में वंदे मातरम् की बहस शुरू होगी। अमित शाह इसकी शुरुआत करेंगे, जबकि जीपी नड्डा दूसरे स्पीकर होंगे। कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खर्गे भी बोलेंगे — जिनकी आवाज अक्सर राष्ट्रीय एकता के बारे में अलग दृष्टिकोण रखती है। ये बहस अब सिर्फ एक संसदीय अवसर नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संवाद बन चुकी है।
क्यों ये बहस इतनी ज़रूरी है?
इस बहस का असली अर्थ गीत में नहीं, बल्कि इसके पीछे के संदेश में है। क्या हम अपने इतिहास को एकता के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं? या फिर इसे विभाजन के लिए बना रहे हैं? आज के युवाओं के लिए ये गीत एक गाना है या एक बहस का विषय? जब एक गीत को चुनाव से जोड़ दिया जाए, तो उसकी सांस्कृतिक शक्ति भी बदल जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
वंदे मातरम् के गीत के कौन-से अंश विवादित हैं?
मूल गीत में देवी भगवती की पूजा और शक्ति के संदर्भ शामिल थे, जिन्हें 1937 में कांग्रेस ने धार्मिक विवादों को दूर रखने के लिए हटा दिया। आज भी कुछ वर्ग इन अंशों की वापसी की मांग करते हैं, जबकि दूसरे कहते हैं कि ये गीत अब एक नागरिक राष्ट्रवाद का प्रतीक है, न कि धार्मिक प्रतीक।
क्या ये बहस बंगाल चुनाव से जुड़ी है?
हां। बंगाल में चुनाव के लिए तैयारी चल रही है, और वंदे मातरम् का इस्तेमाल दोनों पार्टियों ने अपने-अपने राजनीतिक नारे में किया है। कांग्रेस इसे अलग-थलग करने की राजनीति का नाम देती है, जबकि BJP इसे बंगाल की एकता का प्रतीक बता रहा है। ये बहस वास्तविक चुनावी रणनीति का हिस्सा बन चुकी है।
क्या वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गान बनाया जा सकता है?
नहीं। भारत का राष्ट्रीय गान जन गण मन है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 3 अनुसार अधिसूचित किया गया है। वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया है, लेकिन इसे राष्ट्रीय गान नहीं बनाया जा सकता — जिसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी।
क्या युवाओं के बीच इस गीत की लोकप्रियता बढ़ रही है?
कुछ शिक्षा संस्थानों में गीत के बारे में विशेष कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन ज्यादातर युवा इसे एक राजनीतिक नारा मानते हैं। एक युवा सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 27% युवा इसे अपनी राष्ट्रीय पहचान के रूप में मानते हैं, जबकि 58% कहते हैं कि इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए हो रहा है।
क्या इस बहस के बाद कोई कानून बनेगा?
अभी तक कोई विधेयक नहीं पेश किया गया है। हालांकि, सरकार ने युवाओं के लिए वंदे मातरम् के बारे में शिक्षा अभियान शुरू किया है — जिसमें स्कूलों में गीत के इतिहास और सांस्कृतिक महत्व पर विशेष पाठ्यक्रम शामिल हो सकते हैं।
क्या राज्यसभा की बहस लोकसभा से अलग होगी?
शायद। राज्यसभा में अधिक सदस्य विद्वान और अनुभवी होते हैं। इसलिए बहस अधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार पर हो सकती है। अमित शाह का बयान राष्ट्रीय एकता पर होगा, जबकि खर्गे का बयान आजादी के लिए संघर्ष के विविध पहलुओं पर आधारित हो सकता है।
टिप्पणि
Sandeep YADUVANSHI
ये सब बहस तो बस एक गीत के चक्कर में है, जबकि देश के लाखों युवा बेरोजगार हैं। क्या एक गीत हमारी अर्थव्यवस्था को बचा देगा? नहीं। ये सिर्फ एक राजनीतिक ड्रामा है।
दिसंबर 10, 2025 AT 10:38
Vikram S
वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गान बनाने की बात करना अब तक का सबसे बड़ा अपराध है-इसकी शुरुआत बंकिम चंद्र ने की थी, लेकिन आज इसे एक धार्मिक नारे में बदल दिया गया है! ये नहीं होना चाहिए।
दिसंबर 11, 2025 AT 19:16
nithin shetty
क्या कोई बता सकता है कि वंदे मातरम् के मूल संस्करण में कौन से पद निकाले गए थे? मैंने पढ़ा था कि 'देवी भगवती' के जिक्र वाले अंश हटाए गए थे, लेकिन क्या वो असल में धार्मिक थे या सांस्कृतिक? कोई स्रोत दे सकता है?
दिसंबर 12, 2025 AT 05:51
Aman kumar singh
इस गीत को लेकर बहस तो हो रही है, लेकिन याद रखो-ये गीत हमारे पूर्वजों की आत्मा की आवाज था। इसे राजनीति का टूल बनाने की जगह, इसे एक अहसास बनाएं। हम सब एक हैं, चाहे हम किसी भी धर्म के हों।
दिसंबर 12, 2025 AT 10:55
UMESH joshi
जब हम किसी ऐतिहासिक चीज को राजनीति के लिए उपयोग करने लगते हैं, तो उसकी असली शक्ति खो जाती है। वंदे मातरम् कभी एक गाना था, अब ये एक लड़ाई का नारा बन गया है। इसकी जगह हमें देश के बुनियादी सवालों पर ध्यान देना चाहिए।
दिसंबर 12, 2025 AT 11:54
pradeep raj
इस बहस का वास्तविक आयाम यह है कि राष्ट्रीय एकता के लिए एक ऐसा सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का चयन कैसे होता है, जो सभी समुदायों को समाहित कर सके। वंदे मातरम् के इतिहास में एक अद्वितीय जगह है, लेकिन उसके विवादित पहलुओं को अनदेखा करने से हम केवल एक नए विभाजन की ओर बढ़ रहे हैं।
दिसंबर 13, 2025 AT 02:17
Vishala Vemulapadu
अरे भाई, ये सब बहस तो बस बंगाल चुनाव के लिए है। कांग्रेस डर रही है कि BJP इस गीत को अपने प्रचार में इस्तेमाल करेगा। और BJP भी इसे एक टूल बना रहा है। ये सब बातें बस चुनावी फैंटम हैं।
दिसंबर 13, 2025 AT 14:29
Govind Vishwakarma
ये गीत अब एक धार्मिक नारा बन चुका है। जिन लोगों को ये पसंद नहीं आता, उन्हें देशद्रोही बता दिया जाता है। ये लोग क्या जानते हैं कि वंदे मातरम् के मूल में शिव और शक्ति का जिक्र था? अब वो सब छिपा दिया गया।
दिसंबर 15, 2025 AT 07:04
Jamal Baksh
इस गीत को लेकर विवाद तो बहुत पुराना है, लेकिन आज का सवाल यह है कि क्या हम अपनी राष्ट्रीय पहचान को एक गीत पर टिका सकते हैं? या हमें एक ऐसा सामान्य आधार बनाना चाहिए जो हर भारतीय को समाहित करे? यही असली चुनौती है।
दिसंबर 16, 2025 AT 12:52
Shankar Kathir
मैंने अपने गांव में एक बच्चे को ये गीत गाते सुना। उसकी आवाज में कोई राजनीति नहीं थी-बस एक भावना। शायद हमें इस गीत को वापस उसी जगह ले आना चाहिए-जहां ये एक भावना है, न कि एक नारा।
दिसंबर 17, 2025 AT 19:01
Bhoopendra Dandotiya
वंदे मातरम् के शब्दों में एक ऐसा रंग है जो किसी भी भाषा में अनुवाद नहीं हो सकता। ये गीत बंगाल के बादलों की छाया, दक्षिण के नदियों की गूंज और पंजाब के खेतों की सांस को एक साथ लिए हुए है। इसे राजनीति के लिए नहीं, इसे जीवन के लिए बनाएं।
दिसंबर 18, 2025 AT 21:07
Firoz Shaikh
इस गीत को लेकर बहस करने से पहले, हमें ये समझना चाहिए कि ये गीत किस वक्त किस तरह उठा था। ब्रिटिश काल में इसे गाना एक अपराध था। आज ये गाने का अधिकार है, लेकिन उसे राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि अपने अतीत के सम्मान के लिए गाना चाहिए।
दिसंबर 20, 2025 AT 05:34
Uma ML
ये सब बहस तो बस बड़े लोगों के लिए है, जिन्हें लगता है कि गीत गाने से देश बच जाएगा। लेकिन जब मेरी बहन के घर में बिजली नहीं है, तो मुझे ये गीत नहीं चाहिए। चाहिए तो बिजली, पानी, और नौकरी।
दिसंबर 21, 2025 AT 14:04
Saileswar Mahakud
मैं अपने दादाजी के साथ बड़ा हुआ, जो गांव में इस गीत को गाते थे। उनकी आंखों में आंसू आ जाते थे। आज ये गीत उनके भावों को नहीं, बल्कि ट्वीट्स को रिप्रोड्यूस कर रहा है। इसे वापस उन आंसुओं में ले आओ।
दिसंबर 22, 2025 AT 19:35
aneet dhoka
क्या आपने कभी सोचा है कि ये गीत जब ब्रिटिश काल में गाया जा रहा था, तो क्या वो इसे अपने लिए बना रहे थे? शायद ये सब एक बड़ा इंटीलेक्चुअल कॉन्सपिरेसी है। जिसका उद्देश्य हमें एक ऐसी पहचान देना है जो हम असल में नहीं हैं।
दिसंबर 24, 2025 AT 17:02
Harsh Gujarathi
गीत गाओ, लेकिन लोगों को बचाओ 🙏। ये गीत अगर एकता का प्रतीक है, तो इसके लिए लोगों को खुश रखना चाहिए। बिजली, पानी, नौकरी - ये ही असली वंदे मातरम् हैं।
दिसंबर 25, 2025 AT 14:23
Senthil Kumar
बस गाओ। बस गाओ। कोई बहस नहीं।
दिसंबर 27, 2025 AT 00:05
Rahul Sharma
जब हम इतिहास को चुनावी टूल बनाते हैं, तो हम उसकी असली गहराई को खो देते हैं। वंदे मातरम् के बारे में बात करने के बजाय, हमें ये समझना चाहिए कि इसके पीछे कितने लोगों की जिंदगी लग गई थी। इसे एक नारा नहीं, एक याद बनाएं।
दिसंबर 27, 2025 AT 09:21
Krishnendu Nath
वंदे मातरम् गाना तो बस एक गाना है, लेकिन जब इसे राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो ये एक ताकत बन जाता है। अगर हम इसे अपने दिल से गाएं, तो ये एकता का प्रतीक बन सकता है। अगर इसे गाली देकर गाएं, तो ये विभाजन का कारण बन जाता है।
दिसंबर 28, 2025 AT 20:31