73 पर ऑलआउट: दूसरे T20 में भारत A का फ्लॉप शो, ऑस्ट्रेलिया A ने सीरीज पर कब्जा
15.1 ओवर में 73 पर ऑलआउट—मैकाय के ग्रेट बैरियर रीफ एरिना में हुए दूसरे T20 में यही India A Women का स्कोरबोर्ड रहा। ऑस्ट्रेलिया A ने 114 रन से मैच जीता और तीन मैचों की सीरीज 2-0 से अपने नाम कर ली। बड़ी तस्वीर साफ है: इस तरह की हार वर्ल्ड कप से पहले किसी भी टीम के लिए लाल झंडी होती है।
टॉस जीतकर भारत A ने गेंदबाजी चुनी। इरादा साफ था—सुबह की हल्की मदद लेते हुए ऑस्ट्रेलिया A को दबोचने की कोशिश। पर योजना उलटी पड़ी। पिच शुरुआती ओवरों के बाद बैटिंग-फ्रेंडली हुई और कंगारुओं ने ठोस साझेदारियां बनाकर 20 ओवर में 187/4 ठोक दिए। जवाब में भारतीय बल्लेबाजी शुरुआत से ही बिखर गई।
ऑस्ट्रेलिया A की पारी की रीढ़ बनी एलिसा हीली की 70 रन की पारी। सिर्फ 44 गेंदों में 12 चौकों के साथ उन्होंने गलती की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी। उनके साथ ताहलिया विल्सन ने 35 गेंदों पर 43 रन जोड़े। दोनों के बीच 95 रन की साझेदारी ने भारत A की योजनाओं को ध्वस्त कर दिया। हीली के आउट होने के बाद भी रफ्तार कम नहीं हुई—अनिका लेरॉयड ने 35 और कोर्टनी वेब 26* बनाकर टीम को 200 के करीब पहुंचा दिया।
गेंदबाजी में भारत A के लिए सबसे असरदार रहीं बाएं हाथ की स्पिनर राधा यादव। उन्होंने 4 ओवर में 2/35 लिए और बीच के ओवरों में थोड़ी पकड़ बनाई। बाकी गेंदबाजों को या तो लेंथ मिस होती दिखी या फिर हीली-विल्सन ने उनकी अच्छी गेंदों को भी गैप में ढूंढ लिया। ऐसी पिच पर जहां गलती की गुंजाइश कम हो, वही टीम जीतती है जो बेसिक्स पर टिके रहकर एक-एक ओवर मैनेज करे। भारत A यह संतुलन नहीं ढूंढ पाई।
चेस की शुरुआत ही बिगड़ गई। टॉप ऑर्डर को किम गर्थ ने नई गेंद से उधेड़ दिया। स्विंग बहुत ज़्यादा नहीं थी, पर उनकी लाइन-लेंथ कमाल की थी—ऑफ स्टंप के ठीक बाहर, एंगल बदलते हुए, और हिटर को ड्राइव खेलने पर उकसाते हुए। नतीजा—एज, स्लिप, विकेटकीपर और इनफील्ड कैच। गर्थ ने 4 ओवर में 4 विकेट सिर्फ 7 रन देकर झटके। यह वही स्पेल था जिसने मैच को पावरप्ले में ही भारत A की पहुंच से बाहर कर दिया।
मिडिल ऑर्डर से थोड़ी लड़ाई दिखी—वृंदा दिनेश और मिन्नू मणि ने 21-21 रन बनाकर कुछ ओवर निकाले—पर पार्टनरशिप बन ही नहीं पाई। ऑस्ट्रेलिया A ने दबाव बनाए रखा। एमी एडगर ने 2/17 के आसान-से दिखने वाले, पर बेहद कारगर आंकड़े दिए। टेस फ्लिंटॉफ ने 2/23 लेकर अंतत: पूंछ समेट दी। स्कोरबोर्ड पर 187 के सामने 73 का जवाब बताता है कि भारतीय बल्लेबाजों के पास कोई ठोस प्लान B नहीं था।
यह हार इसलिए भी चुभेगी क्योंकि इसी टीम ने अगस्त में ऑस्ट्रेलिया A के खिलाफ एकदिवसीय सीरीज जीती थी। उससे लगा था कि टी20 में भी आत्मविश्वास साथ चलेगा। लेकिन फॉर्मेट बदलते ही समस्याएं सामने आ गईं—पावरप्ले की रिस्क मैनेजमेंट, स्ट्राइक रोटेशन, और 8-12 ओवर के बीच गियर शिफ्ट की समझ। टी20 में यही छोटी-छोटी चीजें मैच का रुख तय करती हैं।
सीरीज अब 2-0 से हाथ से जा चुकी है, तीसरा मैच डेड रबर है। पर यह वही गेम है जिसमें टीम अपनी कमियों पर काम कर सकती है। बेंच की ताकत परखने का भी यही मौका है—कौन पावरप्ले में टिककर 25-30 की सेट-अप पारी खेल सकता है, कौन डेथ ओवर में लक्ष्य का पीछा करते हुए स्कोरिंग-एरियाज़ बदल सकता है, और किन गेंदबाजों के पास प्रेशर ओवर में दो भरोसेमंद यॉर्कर हैं।
पिच की बात करें तो मैकाय की सतह पर सीमर्स के लिए शुरुआत में थोड़ी मदद रहती है, लेकिन जैसे-जैसे गेंद पुरानी होती है, हिटर को अपने शॉट्स खेलने का आत्मविश्वास मिल जाता है। ऑस्ट्रेलिया A ने इसी पैटर्न को पढ़ा—पहले ओवरों में रिस्क कम, सेट होने के बाद गैप ढूंढो, और डेथ में मिस करने वाली गेंद को बाउंड्री में बदलो। भारत A की गेंदबाजी इस पढ़ाई के सामने ढीली दिखी—खासकर लेंथ कंट्रोल और ओवर-द-विकेट बनाम राउंड-द-विकेट एंगल्स के चुनाव में।
भारत A की बल्लेबाजी पर लौटें तो समस्या सिर्फ विक्टों के गिरने की नहीं, रन बनाने की रफ्तार की भी थी। जब विकेट गिरते हैं, स्ट्राइक रोटेशन और भी ज़रूरी हो जाती है। यहाँ सिंगल-डबल का प्रवाह बना ही नहीं। नतीजा—बोलर्स को वही लेंथ बार-बार फेंकने का मौका मिला और उन्होंने दो-तीन ओवर में ही मैच अपने नाम कर लिया।
टीम मैनेजमेंट के सामने अब तीन बड़े सवाल हैं। पहला, टॉप ऑर्डर का कॉम्बिनेशन—क्या शुरुआत में एक एंकर और एक अटैकर का संतुलन सही है, या दोनों ही अटैकर होने से कोलैप्स का खतरा बढ़ रहा है? दूसरा, मिडिल ओवर टेम्पो—स्पिन के खिलाफ स्वीप-रिवर्स स्वीप, डेफ्ट टच और रन-ए-बॉल से 8-9 रन प्रति ओवर तक कैसे ले जाएं? तीसरा, डेथ ओवर की क्लोजिंग—चाहे बैटिंग हो या गेंदबाजी, आखिरी चार ओवर मैच की कहानी लिखते हैं।
वर्ल्ड कप अक्टूबर में है, और यह सीरीज एक तरह से ड्रेस रिहर्सल की तरह थी। नतीजा भले निराशाजनक हो, पर सीखें सीधी हैं। पावरप्ले में विकेट बचाते हुए 45-50, मिडिल में 70-75 और डेथ में 50 के आसपास—यह बुनियादी ब्लूप्रिंट हर पिच पर काम करता है। इसी तरह गेंदबाजी में पहले छह ओवर में हार्ड लेंथ के साथ स्टंप-टू-स्टंप, बीच के ओवरों में स्पिन के साथ पेस-ऑफ और फील्ड का स्मार्ट इस्तेमाल, और डेथ में यॉर्कर/वाइड-यॉर्कर और स्लोअर-वन का मिक्स—यही बैक टू बेसिक्स प्लान है।
मैदान पर निर्णय लेने की रफ्तार भी फर्क डालती है। ऑस्ट्रेलिया A ने सही समय पर फील्ड बदली, गेंदबाजों की लाइन-लेंथ को परिस्थिति के मुताबिक एडजस्ट किया, और भारतीय बल्लेबाजों को स्ट्रेट बैट खेलने का मौका कम दिया। भारत A को इसी टेम्पो में सुधार करना होगा—एक-एक ओवर को छोटे टारगेट में तोड़कर खेलना, सेट बैटर को 12-15 गेंदों तक बनाए रखने की रणनीति बनाना, और चौथे-पांचवें बॉलर से ज्यादा ओवर निकालने की जगह उन्हें टारगेटेड स्पेल देना।
व्यक्तिगत प्रदर्शन की बात करें तो किम गर्थ का 4/7 मैच का निर्णायक स्पेल था। वे लाइन-लेंथ की पाठ्यपुस्तक जैसी गेंदबाजी लेकर आईं—कमाल की स्थिरता, और ऑफ-स्टंप चैनल का लगातार इस्तेमाल। एमी एडगर ने मिडिल ओवरों में जो नियंत्रण दिखाया, उसने भारतीय मिडिल ऑर्डर पर दबाव बनाए रखा। टेस फ्लिंटॉफ ने गति और बैक-ऑफ-लेंथ से टेल को समेटा। ऑस्ट्रेलिया A की यह ऑल-राउंड एफर्ट थी, जिसमें प्लानिंग और एग्जीक्यूशन दोनों साफ दिखे।
भारत A के लिए सकारात्मक क्या रहा? राधा यादव की स्पिन में टेम्पो-तोड़ क्षमता, और वृंदा दिनेश व मिन्नू मणि का संघर्ष। ये तीनों संकेत देते हैं कि सही रोल क्लैरिटी मिलने पर टीम बैलेंस बन सकता है। पर टॉप ऑर्डर को पहली 20 गेंदों में जोखिम कम करके खेलने का माइंडसेट अपनाना होगा—खासकर ऐसी पिच पर जहां बैटिंग बाद में आसान होती है।
मैच के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि तीसरे T20 में टीम किस तरह बदलाव करेगी। क्या एक अतिरिक्त बल्लेबाज के साथ जाया जाए ताकि पावरप्ले में जल्दी विकेट गिरें तो भी कोई एंकर मौजूद रहे? या फिर एक ऑलराउंडर को ऊपर भेजकर अटैकिंग टेम्पो बनाया जाए? बेंच स्ट्रेंथ को आजमाने का यह सही वक्त है।
एक नजर सीरीज समीकरण पर भी। ऑस्ट्रेलिया A ने लगातार दो मैच जीतकर ट्रॉफी पक्की कर ली है। तीसरा मुकाबला नाम भर का सही, लेकिन भारत A के लिए यह आत्मविश्वास वापस लाने का इकलौता मौका है। एक ठोस, प्रोसेस-फोकस्ड परफॉर्मेंस—भले मैच जीतें या नहीं—ड्रेसिंग रूम का माहौल बदल सकता है।
क्रिकेट में हारें कहानी सुनाती हैं। इस हार की कहानी बताती है कि बुनियादी चीजें ही सबसे अहम हैं—लेंथ, लाइन, साझेदारी, और दबाव में फैसले। India A Women के पास सुधार का समय है और संसाधन भी। सवाल बस इतना है कि वे अगले मैच में कितनी तेजी से सीख को अमल में लाती हैं।
कहां चूकी भारत A, और अब सुधार की राह क्या?
हार की चीरफाड़ बिना आरोप-प्रत्यारोप के—ताकि अगले मैच में चूकें दोहराई न जाएं।
- टॉस और रणनीति: गेंदबाजी चुनना गलत नहीं, पर पावरप्ले की योजनाएं स्पष्ट नहीं दिखीं। स्लिप/फ्लोटिंग फील्ड और हार्ड लेंथ का प्रयोग देर से हुआ।
- लेंथ कंट्रोल: हीली-विल्सन के खिलाफ ऑफ-स्टंप चैनल में अनुशासन जरूरी था। शॉर्ट और फुल के बीच का ओवरकरेक्शन रन दे गया।
- साझेदारियां: 30-35 की दो छोटी साझेदारियां भी पीछा आसान कर सकती थीं। यहां विकेट लगातार अंतराल में गिरे।
- स्ट्राइक रोटेशन: डॉट बॉल प्रेशर ने गलत शॉट निकलवाए। सिंगल-डबल की कमी ने गेंदबाजों को अपनी योजना पर टिके रहने दिया।
- डेथ एग्जीक्यूशन: पहली पारी के आखिरी 4-5 ओवर में स्लोअर-वन/वाइड-यॉर्कर का अनुपात कम रहा, जिससे टोटल 180+ पार गया।
आगे का रास्ता सीधा है—रोल क्लैरिटी, पावरप्ले में रिस्क-मैनेज्ड शुरुआत, और स्पिन-सीम का स्मार्ट रोटेशन। तीसरे मैच में अगर भारत A इन तीनों मोर्चों पर तीखे फैसले लेता है, तो न सिर्फ लय लौटेगी, बल्कि वर्ल्ड कप की तैयारी भी पटरी पर दिखेगी।